अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए देश और दुनिया में मशहूर शिमला के जुब्बल तहसील की ग्राम पंचायत नंदपुर के प्रगतिशील बागवानों ने पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करने के लिए एक अनोखी ओर प्रशंसनीय पहल शुरु की है, जो पूरे देश में एक मिसाल बनकर सामने आई है। दरअसल, बागानों में सेब की प्रूनिंग (सेब की कटाई) के दौरान आवंछित टहनियों और पत्तियों को बागवान जला देते थे, इस वजह से धुएं के कारण यहां के शुद्ध वातावरण में प्रदूषण की मात्रा काफी बढ़ जाती है।

इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए ग्राम पंचायत नंदपुर के प्रगतिशील बागवानों ने एक पर्यावरण संरक्षण एवं जन चेतना समिति का गठन किया, जिसका मुख्य उदेशीय प्रदूषण मुक्त वातावरण बनाने के लिए बागवानों को सेब की आवंछित टहनियों और पत्तियों को नहीं जलाने के लिए जागरुक करना था। आवंछित टहनियों और पत्तियों को जलने का यह क्रम काफी वर्षों से चला आ रहा है। इन पत्तियों और टहनियों को जलाने पर निकलने वाले धुएं के गुबार अकसर इस मौसम में सेब बहुल इलाकों में देखने को मिलता है। लेकिन इस साल इस जागरुक अभियान के बाद से पत्तियों और टहनियों को जलाने का क्रम टूटा है, और प्रदूषण में काफी कमी आई है। समिति द्वारा इन टहनियों और पत्तियों से खाद बनाने का तरीका भी स्थानीय लोगों और बागवानों को सिखाया जा रहा है।

इसके लिए एक दिवसीय शिविर लगाकर क्रश मशीन का प्रदर्शन भी किया जा चुका है। इस शिविर में बताया गया कि कैसे क्रश मशीन में सेब की टहनियों और पत्तियों को डालकर बुरादा बनाया जाता है। इस बुरादे की जैविक खाद बनाकर खेतों में फसल उगाने के लिए काम में लेने का तरीका भी बताया गया। समिति और स्थानीय लोगों के सहयोग से यह अभियान काफी सफल साबित हुआ है। अभियान को पंचायत स्तर पर काफी कम समय में सफलता हासिल हुई है।

पंचायत प्रधान, शकुंतला डोड का कहना है कि “इतनी खूबसूरत जगह पर इतना धुआं पर्यावरण के लिए सही नहीं, इन हालात के चलते वह दिन दूर नहीं जब लोग यहां भी पॉल्यूशन मास्क पहनने लगेंगे। बस यही सोच कर हमने इस नेक कार्य की शुरुवात की और जिसमे हमें ग्राम वासिओं का भी भरपूर सहयोग भी मिला है। हम इस अभियान में महिला मंडलों का भी सहयोग लेंगे और हम कोशिश करेंगे यह नेक काम हम पूरे प्रदेश में ले जाएं। हर तरफ लोगों से इसके प्रति से अच्छा रिस्पांस मिल रहा है और आस पास की पंचयात के लोग भी इस मुहीम से जुड़ रहे है।”

राजेश धाण्टा, अध्यक्ष पर्यावरण संरक्षण एवं जन चेतना समिति नन्द्पुर का कहना है “ समिति और स्थानीय लोगों की मदद से पंचायत स्तर पर 99 प्रतिशत तक धुआं रोकने में कामयाबी हासिल हुई है। हम लोगों ने इस जागरुक अभियान के तहत 40 से 50 बागानों का दौरा किया है और लोगों को सेब की टहनियां और पत्तियां जलाने से रोका है। इस दौरान समिति के सदस्यों ने बागवानों को पर्यावरण के प्रति शिक्षित व जागरुक भी किया, पूरी पंचायत में अब कोई सेब की टहनियों को नहीं जला रहा।

फसल के लिए भी नुकसानदायक

दरअसल, सेब की खेती बहुत ही कम टेम्परेचर में होती है, सेब की खेती के लिए कम तापमान होना और सेब के पौधों को भरपूर मात्रा में ठंडक मिलना बहुत जरूरी है। लेकिन, सेब की टहनियों को जलाने के कारण क्षेत्र का तापमान बढ़ जाता है जिससे सेब की खेती भी प्रभावित होती है, जिसका सीधा असर उत्पादन पर भी पड़ता है, आने वाले समय में इसी तरह चलता रहा तो कम उत्पादन के चलते अजीविका पर भी असर पड़ सकता है। क्योंकि, यहां के बागवानों की मुख्य अजीविका का जरिया सेब ही है। पर्यावरण विशेषज्ञों ने पाया कि जिस स्कैब बीमारी के कारण इन टहनियों को जलाया जा रहा है अब उसका खतरा ना के बराबर है, और अगर स्कैब रोग होता भी है तो उसके लिए कई दवाईयां मौजूद हैं। इसलिए अब टहनियों को जलाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

यह है टहनियां, पत्तियां जलाने का कारण

बताया जाता है कि 80 के दशक में यहां सेब के खेतों में स्कैब नामक संक्रमण बीमारी फैल गई थी। सरकार ने इसके लिए कदम उठाते हुए फंगस या फफूंदनाशक इस्तेमाल के अलावा अवांछित टहनियों को जलाने का सुझाव दिया था। इसके बाद से ही यह क्रम एक परंपरा के रूप में चली आ रहा है। लेकिन, अब पर्यावरण के प्रति जागरुक लोगों का इस और ध्यान गया तो उन्होंने इससे होने वाले नुकसान को खत्म करने का जिम्मा उठाया है।